Thursday, June 24, 2010

तथास्तु

तथास्तु
वर क्या मांगू
क्या ना मांगू
मेरी दशा तो
देख ही रहे हो प्रभु
माँगने का विचार,
जगाया है तो ,
मांग लेता हूँ ,
दे दो प्रभु ।
उम्मीदों के ना कटे पर ,
आदमियत का जनून
हर हाल रहे ।
जीवन को ना घेरे तम
समानता का सदा भाव रहे ।
स्वार्थ का तिमिर
ना
मतिभ्रष्ट करे
हरदम दिल में
परमार्थ का दीप जले ।
वाणी में सुवास
धड़कन में
कल्याण का वास रहे ।
गरीब की चौखट पर
छाये रौनक
हरदम खुशहाली की छांव रहे ।
उदासी के बंजर में ,
ना भटके मन
सदाचार,सद्साहित्य का
साथ रहे।
विहस उठे कायनात
तन की माटी में ,
ऐसा भाव भर दो ।
भारती
क्या मांगू
प्रभु तुमसे
अंतर्यामी हो तुम
बनी रहे
समझ पूरी मुझमे
तथास्तु कह दो .................नन्द लाल भारती २४.०६.२०१०

7 comments:

  1. श्रीमान नंदलाल जी,
    इस कविता को "नव्या" पर देखिये....
    - पंकज त्रिवेदी
    www.nawya.in

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  2. आदमियत का जनून
    हर हाल रहे ।
    वाह!

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  3. .बहुत सार गर्वित ...अन्दर तक छू दिया
    मेरे भी ब्लॉग पर पधारें

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  4. सार-गर्भित रचना...
    अच्छा लगा आपकी कला को पढ़कर!
    http://lekhikagunjan.blogspot.com/
    यहाँ आकर मेरे विचार भी पढ़े!
    धन्यवाद!

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