वक्त कहेगा शैतान
कैसी रीति फूल बना जो श्रृंगार
रौदा जाता पाँव तले
जैसे
श्रमिक -गरीब -लाचार।
फूल श्रमिक दोनों की एक दास्तान
चढ़ता सिर एक
दूसरा भगवान ।
श्रमिक पसीने से जीवन सींचता
फटे हाल' अत्याचार सहता
फूल धारण कर आदमी इतराता
यौवन ढलते कूचल जाता ।
कैसी लूटी नसीब
यौवन कुर्बान
हिस्से बस अभिशापित पहचान ।
सीख गया रस निचोडना आदमी
फूल , श्रमिक या वंचित आदमी ।
छल-बल की नीति नहीं है न्यारी
कुचला नसीब जो वही अत्याचारी ।
एक फूल है जगत का श्रृंगार
दूसरा श्रमिक गरीब-वंचित तपस्वी
जीवन की धड़कन जान
ना लूटो नसीब कमजोर की
फूल और श्रमिक दुनिया पर कुर्बान
सच ना माने तो वक्त कहेगा शैतान .........नन्दलाल भारती ...२०.०५.२०१०
Friday, May 21, 2010
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