Thursday, March 4, 2010

मुस्कान

मुस्कान
चादर होती छोटी दूर हुई मुस्कान
टूटते सपने जब से खोई मुकान
खोई नींद खोया चैन कोई बताये ना
हैरान देख बधारी चाहत खोती मुस्कान ।
वक्त भागता छुड़ा हाथ
देख -देख जिया घबराए
जन्म से जो थे प्यारे
हो रहे पराये
बसंत में पतझड़ नजर आये ।
दर्द का दरिया ,
जाने होते अनजान
कहा चैन
जब से दूर गयी मुस्कान
कोई आगे आये
राह बताये ना
दिन पर दिन दूर जाती मुस्कान
कोई बचाए ना
ना डँसे सभ्यता उधार की
पश्चमी के वेग बह जाए ना .............
नन्दलाल भारती
०४.०३.2010

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