Wednesday, March 10, 2010

मय

मय
अधूरे सपने बहुत कुछ करने की आस
दिक्कतों का सफ़र थाती ना कोई पास।
हड्डियों का जोर आदमियत पास
आंसुओ से सींचा जीवन बिताने लगा उदास ।
जीवन गाड़ी समय का पहिया पर भाग रहा
सच्चाई घायल स्वार्थ का दंभ दहाड़ रहा ।
बेचैन मन की आँखों से अनसु बह रहा
बेवफा जमाने से सकूंन दूर हो रहा ।
दर्द के मोहाने में फंस गया हूँ जैसे
आतंक के साए में बसर कर रहा हूँ जैसे ।
भेद की आंधी ने उम्मीदे रौंद दिया है
श्रेष्ठता के मय ने आदमी को बाँट दिया है ।
नन्दलाल भारती
१०.०३.२०१०

No comments:

Post a Comment