मय
अधूरे सपने बहुत कुछ करने की आस
दिक्कतों का सफ़र थाती ना कोई पास।
हड्डियों का जोर आदमियत पास
आंसुओ से सींचा जीवन बिताने लगा उदास ।
जीवन गाड़ी समय का पहिया पर भाग रहा
सच्चाई घायल स्वार्थ का दंभ दहाड़ रहा ।
बेचैन मन की आँखों से अनसु बह रहा
बेवफा जमाने से सकूंन दूर हो रहा ।
दर्द के मोहाने में फंस गया हूँ जैसे
आतंक के साए में बसर कर रहा हूँ जैसे ।
भेद की आंधी ने उम्मीदे रौंद दिया है
श्रेष्ठता के मय ने आदमी को बाँट दिया है ।
नन्दलाल भारती
१०.०३.२०१०
Wednesday, March 10, 2010
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