Thursday, March 25, 2010

खंडित समाज


खंडित समाज विपत्ति अपारा
रूढी डोरी नहीं होवे सहारा
युवा दे ताल करे ललकारा
नेक कर्म गमका संसार
युग बदला ना बदला रूढी उद्देश्य तुम्हारा
बढ़ा भेद तुम्हारी तरुणाई ना बढ़ा भाई-चारा
समता सद्भाना आज के युवा का है नारा
सर्वधर्म-समभाव दुनिया का उजियारा
पर-पीड़ा परमार्थ के भाव हरे अधियारा
बहुत हुआ अन्याय ना छोडो विष की धरा
जतिपंती के छोडो झगड़े समता का कर दो बुलंद नारा
जग जान गया खंडित समाज विपत्ति अपारा...................
नन्दलाल भारती २५.०३.2010

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