दर्द
मय  की आग लगी है जग में
खड़ी दरारे बंट गया आदमी खंड खंड  में ।
श्रेष्ठता की धूप  नफ़रत पली है मन में
आदमी हो रहा बेगाना जग में ।
दीनता की  साजिश सबल की महफ़िल में
तामिल का क़त्ल आंसू दीन के आँखों  में ।
रंगते आशाओ के चन्द्रहार  आंसुओ में
दीन हुआ बेचैन  निराशा का दर्द जीवन  में ।
अरे शोषण करने  वालो सुधि लो,
खुदा  देख रहा है  आसमान से 
कर लो एहसास पर  पीड़ा का
नर से नारायण बन जाओगे जग में ।
नन्दलाल भारती
०७-०३-२०१०
Saturday, March 6, 2010
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