Saturday, March 6, 2010

दर्द

दर्द
मय की आग लगी है जग में
खड़ी दरारे बंट गया आदमी खंड खंड में ।
श्रेष्ठता की धूप नफ़रत पली है मन में
आदमी हो रहा बेगाना जग में ।
दीनता की साजिश सबल की महफ़िल में
तामिल का क़त्ल आंसू दीन के आँखों में ।
रंगते आशाओ के चन्द्रहार आंसुओ में
दीन हुआ बेचैन निराशा का दर्द जीवन में ।
अरे शोषण करने वालो सुधि लो,
खुदा देख रहा है आसमान से
कर लो एहसास पर पीड़ा का
नर से नारायण बन जाओगे जग में ।
नन्दलाल भारती
०७-०३-२०१०

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