Saturday, March 20, 2010

शोषित आदमी

अभिशापित,शोषित आदमी
तरक्की दूर दुःख झराझर ,जीवन तन्हा-तन्हा
जीवन जंग भूमि ,राह में बिछाए जाते कांटे
कर्म भले रहा महान, योग्यता की पूंजी का मान
भेद की जमीं पर डंसा हरदम अपमान
सच उजड़े सपने बिखरा जीवन का पन्ना - पन्ना
तरक्की दूर दुःख झराझर ,जीवन तन्हा-तन्हा..............................
शोषित की रोटी पसीने की कमाई
वह भी होती छिनने की साजिश
कहते अमानुष झांक ले पीछे का मेला तेरा
पेट में भूख खाली फूटी जिनकी थाली
चेतावत मत देख सपने कहत अभिमानी
कैसे माने बात अमानुष की
पेट में पली भूख खुली आँखों का सपना
मन की रौशनी से जोड़ा ज्ञान
कैसे होने दू ,
भेद की जमीं पर बिखरा पन्ना -पन्ना
तरक्की दूर दुःख झराझर ,जीवन तन्हा-तन्हा......................
भेद की दुनिया में विकास के मौंके जाते छीन
हाशिये का आदमी हो जाता जैसे बिन पानी की मीन
कर्म पता आंसू योग्यता संग छल पल-पल है होता
साजिश शोषित दरिद्रता के दलदल में धकेलते है देखा
जीवन दर्द का दरिया शोषित के माथे चिंता की रेखा
अभिशापित का भविष्य पतझड़ के पात
जीवन का डंसा गया पन्ना -पन्ना
तरक्की दूर दुःख झराझर ,जीवन तन्हा-तन्हा......................
ना आयी पास तरक्की कौन है दोषी
जग जान गया
सबका दोषी वर्णवाद दहा गया
योग्य ज्ञानी हाशिये का आदमी भले रहा
छि गया मौंका दोष तकदीर के माथे मढ़ा गया
ये है Xqkukg भयावह मान रहा जहाँ
ना करो पतझड़ का पात शोषित की तकदीर का पन्ना पन्ना
तरक्की दूर दुःख झराझर ,जीवन तन्हा-तन्हा......................
२०-०३-२०१०


























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