Thursday, April 22, 2010

उन्नति -अवन्नती

उन्नति -अवन्नती
उन्नति -अवन्नती की परिभाषा
जान गया है ,
हाशिये का आदमी
वह भविष्य तलाशने लगा है
माथा धुनता है
कहता कब मिलेगी,
असली आज़ादी।
कब तक शोषण का बोझ ढोयेगे
सामाजिक-विषमता का दंश कब तक भोगेगे
कितनी राते और कटेंगी करवटों में ।
रात के अँधेरे की क्या बात करे
दिन का उजाला भी डराता है
वह खौफ में भी सोचता है
कल शायद उन्नति के द्वार खुल जाए
सूरज की पहली किरण के साथ
फिर वही पुरानी आहटे
और दहकने लगती है
जीवित शरीर में चिता की लपटे ।
सोचता है कैसे दूर होगी
सामाजिक-आर्थिक दरिद्रता
कैसे कटेगा जीवन
आजाद हवा पीकर
कैसे मिलेगा
असली आज़ादी का हक़
बेदखल आदमी को ।
उठ जाती है
संभावना की लहर
बेबसी के विरान पर
मरणासन्न अरमान जीवित हो उठते है
शिक्षित बनो
असली आज़ादी के लिए संघर्ष करो
उध्दार खुद के हाथ की ताकत
दिखाने लगती है संभावना
सच यही तो है
उन्नति-अवन्नती के असली औजार ।
नन्दलाल भारती
२२.०४.२०१०




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