Wednesday, April 28, 2010

मकान (कविता )

मकान (कविता )
माकन मंदिर है
जहा ईश्वर के अंश विचरते है
आत्मीय -अपनत्व
और
रिश्तो के रंग बरसते है
जहा से संगठित शीतल -शांत
नेह रसधारा उठती है
ऐसी सकूँ की छाव को मकान कहते है ।
परिवार है बड़े बूढों की ,
बरगद सी छाव है मकान
जहा से फूटते है
प्रेम के अंकुर
और सँवरता है जीवन
बरसता है
सहज आनंद सहानुभूति और त्याग
सद्प्रयतना निरंतर जहा विहसते है
ऐसे जीवन के ठिकान को मकान कहते है ।
जहा सफलता पर बरसते है
बसंत के अब्र
असफलता पर चढ़ते है
सोधेपन के लेप
बहता है आत्मीयता
और अपनेपन का सुख
जहा दुःख-सुख सबके होते है
अद्भुत सुख मकान की छाव में मिलते है
जिसे पाने की परमात्मा भी इच्छा रखते है
इसीलिए ऐसे धाम को मकान कहते है ।
मकान शक्ति-संगठन का प्रतिक है
लक्ष्य है मकान
जहा फलती फूलती है
सभ्यता संस्कृति और नेक परम्पराए
पाठशाला और रिश्ते का आधार है मकान
संस्कार है आचार-विचार है
पुरखो की विरासत
मानवतावाद की धरोहर है मकान
मकान में परमात्मा के दूत बसते है
सच इसीलिए मकान कहते है ।
तिलिसिम है जीवन का मकान
जीवन है ,सपना है मकान
जिसके लिए आदमी जीवन के
बसंत कुर्बान कर देते है
श्रम की ईंट-माटी परिश्रम के गारे से खड़े
ठिकान को मकान कहते है ।
मकान जहा जीवन संगीत बजता है
मंदिर की घंटी मस्जिद की अजान
बुध्धम शरणम गच्छामि
और
गुरुग्रंथ साहेब के बखान की तरह
मानवतावाद के स्वर जहा से उठाते है
इसीलिए मकान को मंदिर कहते है ...
नन्दलाल भारती २८-०4-२०१०

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