Friday, May 14, 2010

मजदूर हताश है

मजदूर हताश है
चकाचौंध ,फलित,सिंचित खेत हरे भरे
खेतिहर -मजदूरों के पसीने की बूँद-बूँद पीकर
अनाज खेत मालिको के गोदामों में भरता ठसाठस
नोट तिजोरी में ,
मजदूर की तकदीर चौखट पर कैद
खेतिहर - मजदूरों की दुर्दशा से खेत गमगीन
बेचारा लाचार मजदूर हताश है ।
कोठी में बैठा मालिक चिंतित मुनाफे को लेकर
मजदूर आतंकित जरूरतों को देखकर
तन को निचोड़ पसीना बनाता
दरिद्रता के अभिशाप को नहीं धो पाता
खेत कामसूत की बदहाली पर उदास है
ना मुक्ति की राह देख मजदूर हताश है ।
खेत नीति सामंतवाद की जागीर
भूमिहीन-खेतिहर-मजदूरों की कैद तक़दीर
मजदूरों के ठिले-कुठिले खाली-खाली
बेरोकटोक घर में धूप की आवाजाही
तन का कपड़ा जर्जर फटा पुराना
सपूतो की बदहाली पर खेत गमगीन
लोकतंत्र के युग में मजदूर हताश है
कौन आएगा आगे ताकि
मजदूरों के भाग्य जागे
कौन उठाएगा
लोकनायक जयप्रकाश ,
विनोव भावे के हथियार
यही करेगा
भूमिहीन-खेतिहर-मजदूरों का उद्धार
हो गया शंखनाद
सच खिलखिला उठेगा खेत
छंट जायेंगे विपदा के बादल
तब ना होगा
खेतिहर-भूमिहीन-मजदूर हताश .......................नन्दलाल भारती-- १४.०५.२०१०

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