Thursday, May 13, 2010

बुद्ध हृदय

बुद्ध हृदय

आँख खुली ह्रदय विस्तार पाया
ढूढ़ना शुरू कर दिया इन्सान
जारी है तलाश आज तक ।
बूढा होने लगा हूँ वही का वही पड़ा हूँ
इरादा नहीं बदला है
नहीं ख़त्म हुई है तलाश आज तक ।
भूले भटके लोग मिल जाते है
मान देने लगता हूँ
उम्मीद टिके चेहरा बदल जाता है
यही कारण है तलाश अधूरी है आज तक ।
उपदेश देने वाले मिल जाते है
खुद को धर्मात्मा दीन दरिद्र का मसीहा
इंसानियत का पुजारी तक कहते है
यकीन होने लगता है तनिक-तनिक
बयार उठती है चोला उड़ जाता है
यकीन लहुलुहान हो जाता है
पता लगता है
इन्सान के वेष में शैतान
सच यही कारण है कि
सच्चा इन्सान नहीं मिला आज तक ।
मन ठौरिक कर आगे बढ़ता हूँ
इन्सान सरीखे लोग मिलते है टुकड़ो में
कोई धर्म का कोई ऊंची जाति का
कोई धन का कोई बल का
कोई पद का प्रदर्शन करता है
सच्चे इंसान का दर्शन नहीं होता
यही कारण है कि
मै हारा हुआ हूँ आज तक ।
हार नहीं मानता, राह पर चल रहा हूँ तलाश की
जिस दिन वंचितों, दीन दरिद्रो के उद्धार के लिए
मानवीय एकता के लिए त्याग करने वाला
बुद्ध हृदय मिल गया इन्सान
समझ लूगा जीवन सफल हो गया
मिल गए भगवान्
मेरी तलाश पूरी हो जाएगी
नहीं हुई तो हार नहीं मानूगा
चलता रहूगा रचता रहूगा जीवन पर्यंत
बुद्ध हृदय मिलता नहीं जीवन में जब तक ...... नन्द लाल भारती १३.०५.२०१०

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