Saturday, May 15, 2010

सब कुछ यहाँ नहीं ख़त्म होता

.सब कुछ यहाँ नहीं ख़त्म होता ।।
जड़ खोने की कोशिशे तो बहुत हुई
हो रही है निरंतर गुमान की कमान पर
सूखी जमीन से जुडी
दुआओं की आक्सीजन पर टिकी जड़े
हां कुछ ख़त्म तो हुआ सपने टूटे
दूसरो के हाथो जो हो सकता था
हुआ पर सब कुछ खत्म नहीं हुआ ।
हुनर दिखने का मौका छिन गया
नहीं छिना जा सका हुनर
क्योंकि छिनने की चीज नहीं
बचा रहता है
स्मृति के सागर में
रचवा देता है वक्त
अश्रु की लहरों से
बन जाती है निर्मल पहचान
सच है सब कुछ नहीं ख़त्म होता
आदमी से शैतान बना
लाख ख़त्म करना चाहे ।
ख्वाब रौंदे जाते ,
महफ़िल में जलाये जाते
कैद नसीब आजाद नहीं की जाती आज भी
फरेब नए -नए अख्तियार किये जाते
फूटी किस्मत वाला ना निकल पाए आगे
निकलने वाला निकल जाता है
हौशले की उड़ान भरकर
करने को बहुत कुछ होता है
आदमी से शैतान बना लाख बोये कांटे
उम्मीद के सोते नहीं सूखने चाहिए
क्योंकि सब कुछ ख़त्म करना
आदमी से शैतान बने के बस की बात नहीं ।
मौत भी नही कर सकती ख़त्म
जीवन की उम्मीदे
आदमी के बस की बात कहा
सब कुछ ख़त्म करना
ठन्डे चूल्हे में भी आग सुलगती है
तवा गरम होता है भूख मिटती है
तप- संघर्ष करना पड़ता है
कर्म के साथ उम्मीद की जुगलबंदी देती है
अस्तित्व को निखार,गढ़ती जीने का सहारा
धैर्य और हौशले की आग
दिल में सुलगाये रखना चाहिए
सच है सब कुछ यहाँ नहीं ख़त्म होता
और नहीं किया जा सकता है .... नन्दलाल भारती ॥ १४.०५.२०१०

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