Saturday, June 5, 2010

सुलगते सवाल

सुलगते सवाल
पद दलित अपराध तो नहीं
हो गया है ,
ऊपर उठे श्रेष्ठ की निगाहों में
पद-दलित को आँका जाता है गुलाम
क्यों ना हो कई गुना अधिक योग्य
योग्यता बौनी है
श्रेष्ठता के आगे आज भी ।
श्रेष्ठ के गुमान में हो रहा है अपराध
हो रहा है अभिशापित छोटे पद पर
काम करने वाला उच्च शिक्षित आदमी
धकिया दी जाती है
बड़ी-बड़ी डिग्रिया और ऊँचा कद भी ।
श्रेष्ठता होती है छाव ज़माने के लिए
दुर्भाग्य करने लगी है
गुनाह बरसने लगी है आग
पद-दलित का भविष्य तबाह करने के लिए
मान लेता है जन्म सिध्द अधिकार
शोषण,उत्पीडन और उपभोग का
श्रेष्ठता के खंजर से जीतता ओहदेदार ।
भूल जाता है
पद दलित सजा नहीं व्यवस्था है
कुव्यवस्था के चक्र में अभिशाप
सफलता और सुख की आस में
मेहनत,लगन,ईमानदारी के बदले
पद-दलित पता है
प्रताड़ना भोगता है अभिशाप ।
दुर्भाग्यबस पद दलित -दलित हो गया
आ गया रुढ़िवादी व्यवस्था से आच्छादित
संस्था की चाकरी में तो समझो
जीवन का बसंत हो गया पतझड़
हिस्से की तरक्की बदल गयी रास्ता ।
यही तो चल रहा है गोरखधंधा
योग्यता घायल है रुढ़िवादी व्यवस्था में
और तरक्की के शिखर है पैदाइसी श्रेष्ठता
हक़ से बेदखल पद-दलित की उम्र का
बसंत हो रहा है अभिशापित।
निरापद कब तक कटेगा सजा , बिन गुनाह की
कब तक तडपेगी योग्यता
कब तक अवरूध्द रहेगी तरक्की
कब तक टूटेगे खुली आँखों के सपने
कब तक भंग होगी जीवन की तपस्या
कब तक पद-दलित रहेगा अभिशापित
क्या कभी होगे हल ये सुलगते सवाल
क्या-पद -दलितों को मिलेगा खुला आसमान ...........नन्द लाल भारती ०४-०६-२०१०

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