Tuesday, June 8, 2010

सम्मान की तलाश

सम्मान की तलाश ॥
अंग्रेज भाग गए
सर पर पांव रखे दशको पहले
परन्तु सम्मान की तलाश पूरी नहीं हुई
हाशिये के आदमी की ।
राजनीति के उथल-पुथल के दौर में
नगाडो का शोर सुनाई पड़ जाता है
समानता के बादल
तनिक देर के लिए आते है
फिर एकदम से छंट जाते है
सामाजिक ठेकेदारों की फुफकार के आगे ।
शोरे थम जाता है पांच साल के लिए
समानता का ऐलान मौन हो जाता है
सत्ता के गलियारे में
चल पड़ता है घमासान ।
भूल जाता है समानता का वादा
एजेंडे से गायब हो जाती है समानता
पसर जाता है घनघोर अँधियारा ।
जातिभेद का जहर कर रहा शर्मिंदा
विधान संविधान में सर्व समानता का जोर
भारतीय समाज में जातिवाद का शोर
दबे कुचलों की सरकारी मदद का विरोध पुरजोर
सामाजिक आर्थिक समानता से दुत्कार
शोषित समानता के लिए कुर्बानी को तैयार ।
भेदभाव उस सत्तावान की याद है
जिसने बोये है नफ़रत के बीज
सत्ता के लिए
हाशिये के आदमी को उबरने नहीं
देता आज भी
बसर कर रहा दोयम दर्जे का आदमी होकर
अपने गाव अपनी माटी और अपने देश में ।
भगवान बुद्ध ,महावीर ,
गुरुनानक की क्रांति अधूरी है
जोह रही है बाट
युगों बाद भी पूरी होने के लिए
सामाजिक-राजनैतिज्ञ नेता वाकयुद्ध छेड़ते है
फिर दोयम दर्जे के आदमी की व्यथा भूल जाते है
पांच साल के लिए ।
आते चुनाव खुरचते है घाव सत्ता के लिए
क्या इस तरह कभी मिटेगी नफ़रत की खाई ?
पूरी होगी चौथे दर्जे के आदमी के सम्मान की तलाश .......नन्द लाल भारती ०७-०६-२०१०

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