Thursday, June 10, 2010

दृष्टिवृष्टि

दृष्टिवृष्टि
हादशा याद रहेगा
खून के लिए तो नहीं था
कम भी ना था
चाहुतरफा आक्रमण
पहचान पर, कर्मशीलता
व्यक्तित्व वफादारी का खून था
वह हादशा ।
गूँज रहा था
आज के कंस का अट्टहास
कलेजे को छेदकर
बोया गया आग
क्योंकि
श्रमिक ढूढ़ रहा था अस्तित्व
दे रहा था
अगिन परीक्षा बार- बार ।
सही उत्तर के बाद भी
कर दिया जा रहा था फेल
तरक्की भागी जा रही थी
कोसो पीछे ,
साबित कर दिया जा रहा था
बेकार
मजबूर किया जा रहा था
करने को बेगार ।
यही हो रहा है
सदियों से कमजोर के साथ
नहीं आ रही है
तरक्की हाथ ।
पांच जून का हादशा गवाह है
अधिकार हनन ,दमन और संघर्ष का
कैसे बयां करू हादशे का
समझ लीजिये
अधपकी फसल पर ओलावृष्टि
कर रही है तबाह
दृष्टिवृष्टि दबे-कुचलों का जीवन -----नन्दलाल भारती .... ०८.०६.२०१०

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