विरोध ॥
तल्ख़ बयानबाजी हुनर का विरोध
आखिरी आदमी के अरमानो का क़त्ल
व्यक्ति या वर्ग ख़ास के लिए
तोहफा हो सकता है
परन्तु
आखिरी आदमी देश और
सभ्य समाज के लिए विषधर ।
आखिरी आदमी कायनात का पुष्प है
क़लिया सूख जाती है पुष्प बनाने से पहले
सुगंध पर लगे है पहरे
कब जवान हुआ ? बूढ़ा हुआ पता चला
आखिरी आदमी को सहानुभूति की नहीं
हक़ की दरकार है ।
आखिर आदमी की योग्यता कम आंकी जाती है
विशेषता नजर नहीं आती है
अँधेरे में रखने की साजिश चलती रहती है
घमासान इक्कसवी सदी के उजाले में ।
हक़ की बयार स्वार्थ बस चल पड़ती है
आस उजास में पंख फड फड़ाने लगती है
भूचाल आ जाता है, जंग छिड़ जाती है
फिर एकदम सब कुछ जम जाता है
पाषाण की तरह
विरोध सदियों से चल रहा है
तभी तो इक्कसवी सदी में आदमी अछूत है
तरक्की की बाट जोह रहे को हक़ चाहिए
कशी से संसद तक, जंगल से जमीन तक
वह उपजा सकता है धरती से सोना
भर सकता है सूखती नदियों में जल
बहा सकता है दूध-घी की गंगा
कायनात का अमृत बीज है आखिरी आदमी
कुसुमित होना है उसे
हक़ की दरकार है विरोध की नहीं ......नन्दलाल भारती...०३.०६.२०१०
Friday, June 4, 2010
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