Monday, January 25, 2010

नव प्रभात

नव प्रभात
हे आते हुए लम्हों बहार की ऐसी बयार लाना ,
नव चेतना परिवर्तन नव उर्जावान बना जाना ।
अशांति ,विषमता ,
महंगाई की प्रेत छाया न मदराए
न उत्पात न भेदभाव ,
न रक्तपात न ममता बिलखाए।
मेहनतकश धरती का ,
सूरज चाँद नारी का बढे सम्मान ,
आँखों में आंसू ,
मेहनत पाए भेद रहित सम्मान ।
जल उठे मन का दीया ,
तरक्की के आसार बढ़ जाए
माँ बाप की ना टूटे लाठी ,
कण कण में ममता समता बस जाये ।
भेद का दरिया सूखे ,
दरिंदो की ना गूंजे हाहाकार
इंसानों की बस्ती से बस गूंजे ,
इंसानियत की जयजयकार ।
देश और मानवता की रक्षा के लिए ,
हर हाथ थाम ले तलवार
तोड़ दीवारे भेद की सारी ,
मानव जाति और देश धर्म के लिए रहे तैयार ।
जाति धर्म के ना पड़े ओले,
अब तो मौसम बासंती हो जाए
शोषित मेहनतकश की चौखत,
तक तरक्की पहुँच जाये ।
एहसास रिसते जख्म का दर्द,
दिल में फफोले भी खड़े है
जीवन का सार नजदीकी,
उनसे जो तरक्की समता से दूर पड़े है ।
बिते लम्हों से ,
नही शिकायत पूरी हो जाए कामना
हे आते हुए लम्हों आस साथ तुम्हारे ,
सुखद हो नवप्रभात
सच हो जाए खुली आँखों का सपना ।
नन्दलाल भारती
२६.०१.2010

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