Wednesday, January 27, 2010

सच्चा धन (कविता)

सच्चा धन (कविता)
अक्षम हूँ गम नहीं
चमकते सिक्को से
भरपूर पास नहीं है जो ।
पर गम है
इसलिए नहीं कि
ऊँचा पद और दौलत का ढेर नहीं
बस इसलिए कि
आज यही तय करने लगा है
आदमी का कद और बहुत कुछ ।
आज कोई बात नहीं
सदियों से ,
सद्कर्म और परोकार की राह पर चलने वाला
संघर्षरत रहा है
आर्थिक कमी को झेलते हुए
काल के गाल पर नाम लिखा है ।
मुझे तो यकीन है आज भी
पर उन्हें नहीं
क्योंकि
मेहनत ईमान की रोटी और
नेक राह
तरक्की नहीं है
अभिमान के शिकार बैठे लोगो के लिए ।
मैं खुश हूँ
यकीन से कह सकता हूँ
मेहनत ईमान की रोटी
और नेक राह पर चलने वालो के पास
अनमोल रत्न होता है
दुनिया के किसी मुद्रा के बस की बात नहीं है
जो इन्हें खरीद सके
यह बड़ी तपस्या का प्रतिफल है ।
यह प्रतिफल ना होता तो
मुझ जैसे अक्षम के पास भी
दौलत का ढेर
पर आज का कद ना होता
जो
दौलत के ढेर से ऊपर उठाता है ।
कोई गिलाशिक्वा नहीं कि
पद और दौलत से गरीब हूँ
आर्थिक कमजोर हूँ
पर थोड़ी है उनसे जो आदमी को बाँट रहे है
धन को सब कुछ कह रहे है
पर मैं और मेरे जैसे नहीं
मैं तो खुश हूँ
क्योंकि
सम्मान धन के ढेर से नहीं
सद्भावना,मानवीय समानता
और
सच्ची ईमानदारी में है
यही सच्चा धन भी तो है
जो
बस समय के पुत्रो को नसीब होता है ।
नन्दलाल भारती
२७.०१.2010

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