उपकार
नफरत किया जो तुमने
क्या पा जाओगे
मेरे हालात एक दिन,
जरुर बह जाओगे ।
गए अभिमानी कितने आयेगे
और
गरीब कमजोर को सतायेगे
मैं नहीं चाहूगा की वे बर्बाद हो
पर वे हो जायेगे
क्योंकि
गरीब की आह बेकार नहीं जाती
एक दिन खु जान जाओगे ।
ना था बेवफा
दम्भियों ने दोयम दर्जे का मान लिया
शोषित के दमन की जिद कर लिया ।
समता का पुजारी अजनबी हो गया
कर्मपथ पर अकेला चलता ही गया ।
वे छोड़ते रहे विष बाण ,
घाव रिसता रहा
आंसुओ को स्याही मान,
कोरे पन्ने को सजाता रहा ।
शोषित की क़ाबलियत का उन्हें अंदाजा ना लगा
भेद का जाम उनकी महफिलों में ,
शोषित उन्हें तो अभागा लगा ।
मुझे तो बस वक्त का इन्तजार है,
कब करवट लेगा
मेरे दुर्भाग्य पर हाथ कब फेरेगा ।
मेरी आराधना को कबूल करो प्रभू
नफरत करने वालो के दिलो में
आदमियत का भाव भर दो
एहसानमंद रहूँगा तुम्हारा
यही उपकार कर दो ॥नन्द लाल भारती २५.०१.2010
Monday, January 25, 2010
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