सन्देश ......
हे प्राणनाथ अब तो सुन लो
आओं उड़ चले उस देश
जहाँ आँखे हो जाए हरी ,
पेड़ हरे भरे हो जैसे दरवेश ।
खूब खेले आँख मिचौली ,
चुल्लू भर- भर पानी पीये
फुदक-फुदक चुंगे दाना
झाड़ो के बीच हम जीयें ।
ना हो आरे की कर-कर
ना चीखते स्वर ,
ईंट पत्थरो की जोर-जोरी का चढ़ा
है ज्वर ।
प्यास बढ़ रही
सूरज आग बरस रहा
तन छाया को तरस रहा।
जल रहा सब कुछ
ना जीवन बच पायेगा
पानी-पानी करते करते,
तन सुलग जाएगा ।
प्रिये क्यों कहती
छोड़ने को अपना देश
जल जंगल जीवन का बांटे सन्देश ।
गलती ना कर अब ले सब वादा
ना रचे साजिश ,
वरना राख हो जाएगे सब दादा ।
आओ प्रिये चले
चुन-चुन कर बीज लाते है
अपने रक्त से पाल पोस बढ़ाते है ।
पड़ोस वाले को दूर-दूर सभी को बतायेगे
पेड़ लग्गाने की कसम दिलायेगे ।
सभी एक -एक लगायेगे
तो हरा भरा हो जायेगा चमन
होगी खूब बरसा,
फलेगा फूलेगा गुलशन ।
प्राणनाथ ठीक तो है
ए तो सभी जानते है
महत्व पेड़ का कहाँ मानते है ।
प्रिये कुछ भी हो
संकल्प पक्का है हमारा ,
जन जन को देगे
जल जंगल ही जीवन का सन्देश
प्राण प्यारे हम साथ तुम्हारे
बढियां है उपदेश ।
जन्मभूमि स्वर्ग से प्यारी,
ना जायेगे हम परदेश
आओ चले
जन-जन को बांटे हरियाली खुशहाली का सन्देश ......
नन्दलाल भारती
Monday, February 1, 2010
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