Monday, February 8, 2010

लोग की कहेंगे ।

लोग क्या कहेंगे
घबराहतो का दौर बढ़ने लगा है ,
धोखा की गिरफ्त में आम आदमी आने लगा है ।
थक हार कर पूजाघर में गिडगिडाने लगा है ,
कभी ना हाथ फैलाया सर पटकने लगा है ।
यही तो स्थान है
मन की शांति का ,खुद के समझाने समझाने का
घबराहतो के दौर से गुजर रहे आम आदमी का ।
हाशिये के आदमी के साथ आदमी का आतंक
शोषण का रूप भयावह ,
रक्त रंजित नकाब ओढ़े आदमी का
याद है आदमी का छल
विरोध, साजिशें और रिश्ते जख्म पर
नए-नए घाव का ।
आज भी फलफूल रही है
दीन को दीन करने की कारगुजारियां
दहकते हुए दर्द की अंदेखिया।
आदमियत का रिश्ता राख कर रहा
लहू पीकर जीने वाला आदमी ,
हक़, हिस्सा ,तकदीर ठगने में माहिर
हो गया है मतलबी आदमी ।
क्रुन्दन,पेट का पीठ में चिपकना
कराह की लपटें दृश्यमान नहीं होते
हाशिये के आदमी का ,
आदमी ही तो गुनाह कर रहा है
हाशिये के आदमी की तकदीर कैद करने का ।
कुंडली मारे बैठ गया है विषधर सा
हितों पर वज्रपात करने के लिए
दहशत में रखने के लिए ।
हाशिये के आदमी के साथ धोखा
महापाप और भगवान के साथ है धोखा ।
हाशिये के आदमी को खुला आसमान चाहिए
समानता- आर्थिक उन्नति का हक़ चाहिए।
रख लो आदमियत का मान ,
ना सींचो आंसू से अभिमान
हाशिये का आदमी भी चाहता है ,
तरक्की और सम्मान ।
नहीं मिला हक़ तो ललकार करेगे ,
सोचो लहू में तरक्की तलाशने वालो को
क्या कहा है जमाना ,
बदलते वक्त के साथ,
लोग तुम्हे क्या कहेंगे ।
नन्दलाल भारती
०८.०२.२०१०

1 comment:

  1. अच्‍छी लगी आपकी रचना .. इस नए चिट्ठे के साथ हिन्‍दी चिट्ठा जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

    ReplyDelete