बेशर्म माहौल  में
आज यानि  जनवरी दो हजार दस
हवा संग ठण्ड लोग कह रहे थे बस ।
हवा में  हाड़ फोड़ देने की अंगडाइयां 
ठण्ड से जकड़ा ले रहा था जम्हाइयां  ।
बाहर   दस्तक दरवाजा   खोला
आया बर्फ का झोंका
बालक आजाद टोंका ।
मेरे मुंह से निकला वाह क्या ठण्ड है
आज के आदमी सी रंज है ।
आदमी मतलबी
इससे क्या लेना कोई हो मजहवी ।
बर्फ हवा  बदन से टकराई
फिर मुंह से निकल गया अब कुल्फी जम जाई ।
बालक बोला चाटकर जाऊँगा खूब मजा आयी ।
क्या पता उसको
 कौन चाट कर जहा किसको ।
अंधी तरक्की के मोह में
कुरीति - कुर्सी की ओट में
आधुनिकता के बेशर्म माहौल  में ।
नन्दलाल भारती
१०-0२ -२०१०
Wednesday, February 10, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
 

No comments:
Post a Comment