परछाइयां
दिल पर रिसते घाव की तरह
दस्तक दे चुकी है परछाइयां ,
ऊचनीच भेदभाव अमीरी ,
गरीबी की नित गहराती खाइयां ।
छल रही नित यहाँ रुढ़िवादी बुराइयां
युग बदला पर ना बदली,
सामाजिक बुराइयां।
आज भी आदमी छोटा है
जाति के नाम पर धोखा है ।
जवां है भेद की बुराइयां
जाति से छोटा भले व्यक्ति महान
पा रहा रुसुवाइयां ।
मानव मानव एक समान
न कोई छोटा न कोई बड़ा
कर्म गढ़ता है ऊचाईयां
यहाँ है धोखा जातीय योग्यता
बनती निशानिया।
कौन तोड़ेगा भ्रम को
कौन ख़त्म करेगा दूरियां
जातिवाद के नाम बढ़ रही बुराइयां।
मानवता पर बदनुमा धब्बा
सम्मान के साथ जीए
दूसरो को भी मिले समानता का हक़
आदमियत की यही दुहाइयां ।
मानवीय समानता नभ सी ऊचाइयां
बुद्ध हुए भगवान चले आदमियत की राह
अमर है जिनकी कहानिया
आओ करे वादा
ना बोएगे भेद के विषबीज
ना सीचेगे परछाइयां ।
नन्दलाल भारती
०५-२-२०१०
Friday, February 5, 2010
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Chote se village me rahte huye itnaa badaa safar mujhe bhi motivate kartaa hai. badhaai.
ReplyDeleteRegads manik
well said sir,
ReplyDeleteAVN11SH SHARMA