Friday, February 12, 2010

महादर्द

महादर्द
सुबह होते ही शुरू हो जाता है
शिकायतों का दौर
अखबार हाथ में आते ही
क्योंकि
ये अख़बार लेकर आते है
क़त्ल बलवा ,रिश्वतखोरी
धार्मिक जटिया उन्माद
दहेज़ की आग में धू-धू कर
जलती नवविवाहिता की खबरे
और इन खबरों के बीच
अच्छी खबरे दम तोड़ देती है ।
लहुलुहान अखबार को देखकर
शुरू हो जाता है
सर नोचने का महादर्द।
टी वी तो और भी महादर्द है
परोसती है अश्लीलता की तश्तरी में
नगे उत्तेजित, भड़काऊ दृश्यों के मीठे जहर ।
अखबार और टीवी चैनल की,
थोथी शिकायत करते नहीं थकते ।
बहिष्कार भी तो नहीं करते ,
जनाब सचमुच रास नहीं आ रहे है
ये मीठे जहर है तो
कर दीजिये बहिष्कार
पढ़ना शुरू कर दीजिये
अच्छी साहित्यिक पुस्तके
क्योकि ये पुस्तके करती है
चरित्र निर्माण बढ़ती है मानसिक शक्ति
पोषित करती है
नैतिक मूल्य, सद्भाना ,
सामाजिक उन्नत संस्कार
ललकारती है तोड़ने को,
कुरीतियों पर आधारित परम्पराए
सीखती है
अस्मिता को जिन्दा रखना
और बढ़ाती है स्वाभिमान भी
तो महादर्द की पीड़ा क्यों
सद्साहित्य की छांव क्यों नहीं ।
नन्दलाल भारती
१८.०३.२००९

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