आज के रावण और कंस
हे भगान नहीं देख रहे
कमजोर का दुःख
और
जरूरतों का बोझ
अत्याचार द्वेष दंभ भी ।
उरग से मतलवी आदमी का
रुतबे के शूल चूस रहा
तुमको भी तो नहीं है छोड़ा ।
रूप श्रृंगार रुतबा और दौलत
पीताम्बर बगुले की पंख समान
माला माथे तिलक भी
रूप बदलने में माहिर हो गया है ।
सब कुछ तुम देख ही रहे हो
तुम्हारे नाम पर भी तो,
ठग रहा आदमी आदमी को ।
दीन दया धर्म परहित ,
तुम्हारी डर से बेखबर
कमजोर के आज और कल को डकार रहा ।
धोखेबाज अभिमानी है वो
मालाब सधारे ही बदल लेता है रूप जो
दगाबाज अव्वल शिकारी बन गया है ।
प्रहार से इन्सानियत भयभीत है
कब तक अभिमान चिरयौवन में रहेगा
आदमी कब तक समानता का विरोध करेगा
कब तक शैतान को सह दोगे भगवन ।
सत्यानाश की कामना नहीं
सदबुधि दो भगवन
कमजोर के दर्द को समझ सके
आदमी के रूप में आज का शैतान ।
रावण कंस जैसे अनेक दुराचारियो का घमंड चूर किया
राजा से रंक और रंक से राजा कितनो को बना दिया
आज के रावण और कों देखकर मौन क्यों हो
कुछ कर भगवन
दुखी कैसे बसर कर पायेगे ।
उठा लो सुदर्शन
करदो आज के रावण और कन्सो का विनाश ।
छांट दो तम कर दो दीन दुखियो का उद्धार भगवन
अब तो उठा लो सुदर्शन
कर दो
आज के रावण और कन्सो का सर्वनाश भगवन ।
नन्दलाल भारती
१३-०२-२०१०
Friday, February 12, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment