Friday, February 12, 2010

आज के रावण और कंस

आज के रावण और कंस

हे भगान नहीं देख रहे
कमजोर का दुःख
और
जरूरतों का बोझ
अत्याचार द्वेष दंभ भी ।
उरग से मतलवी आदमी का
रुतबे के शूल चूस रहा
तुमको भी तो नहीं है छोड़ा ।
रूप श्रृंगार रुतबा और दौलत
पीताम्बर बगुले की पंख समान
माला माथे तिलक भी
रूप बदलने में माहिर हो गया है ।
सब कुछ तुम देख ही रहे हो
तुम्हारे नाम पर भी तो,
ठग रहा आदमी आदमी को ।
दीन दया धर्म परहित ,
तुम्हारी डर से बेखबर
कमजोर के आज और कल को डकार रहा ।
धोखेबाज अभिमानी है वो
मालाब सधारे ही बदल लेता है रूप जो
दगाबाज अव्वल शिकारी बन गया है ।
प्रहार से इन्सानियत भयभीत है
कब तक अभिमान चिरयौवन में रहेगा
आदमी कब तक समानता का विरोध करेगा
कब तक शैतान को सह दोगे भगवन ।
सत्यानाश की कामना नहीं
सदबुधि दो भगवन
कमजोर के दर्द को समझ सके
आदमी के रूप में आज का शैतान ।
रावण कंस जैसे अनेक दुराचारियो का घमंड चूर किया
राजा से रंक और रंक से राजा कितनो को बना दिया
आज के रावण और कों देखकर मौन क्यों हो
कुछ कर भगवन
दुखी कैसे बसर कर पायेगे ।
उठा लो सुदर्शन
करदो आज के रावण और कन्सो का विनाश
छांट दो तम कर दो दीन दुखियो का उद्धार भगवन
अब तो उठा लो सुदर्शन
कर दो
आज के रावण और कन्सो का सर्वनाश भगवन
नन्दलाल भारती
१३-०२-२०१०

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