Wednesday, February 3, 2010

नसीब लिखने की जिद कर ली है ।

नसीब लिखने की जिद कर ली है
मन की कहा था
अपना या गैर था कोई
पर अपना ही समझकर ,
तोड़ा विश्वाश अमानुष ने
बाढ़ का पानी समझकर ।
दिल को ठेस लगी जानकर
दिल खोलने की लालसा थी
पर क्या दिल की किताब
लहुलूहान हो गयी थी ।
कौन सुनता है यहाँ
जिसकी तकदीर कैद हो
सुनेगा भी कैसे
जिह्वा पर रसधार हो
दिल में रखता तलवार हो ।
कर लिया है तहकीकात
आज मुखौटाधारी आदमी ,
मतलब की बात करता है
निकल गया काम तो,
ठोकर मार आगे बढ़ता है ।
सच तो यही है
माथे उदासी आँखों में पानी
दीन पर करे गौर तो ,
दीनता की यही असली कहानी ।
कर लिया है हमने भी पैमाइश
बचने की तलाशने लगा हूँ गुन्जाइश ।
मकसद को तराश कर ,
चलना सीख लिया है
आदमियत की राह को,
जीवन का उद्देश्य बना लिया है ।
अब तो हमने ना कहने और
न मांगने की जिद कर ली है
खुदा को मान गवाह,
नसीब लिखने की जिद कर
ली है ।
नन्दलाल भारती
०३-०२-2010

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